बेटर्ड बेबी सिंड्रोम / चकनाचूर बेबी सिंड्रोम

चित्र: चेहरे की सूजन और चेहरे, गर्दन, हाथ और पीठ पर नीले और बैंगनी रंगीन पैच । घुटने और हाथों के पीछे सूजन (खून बहने के संकेत) । स्केलप में बालों के बीच में स्पैस (बालों को उखाड़ा हुआ है), और बच्चा बेहद चिंतित और डरा हुआ प्रतीत हो रहा है ।

बेटर्ड (चकनाचूर) बेबी सिंड्रोम   

हेनरी केम्प ने 56 वर्षों पूर्व बेटर्ड बेबी सिंड्रोमइस शब्द को वर्णित किया था। तब से इस सिंड्रोम का वर्णन करने वाली कई रिपोर्ट अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। बेटर्ड बेबी सिंड्रोम की परिभाषा है “3 वर्ष से कम उम्र (मुख्यतया) के बच्चों में एक या एक से अधिक बार, गैर-आकस्मिक चोट या शारीरिक शोषण, जो के आम तौर पर माता-पिता, पालक माता-पिता, अभिभावक या विश्वास की स्थिति में एक वयस्क द्वारा किया जाता है”। इसे शेकन (हिलाना) बेबी सिंड्रोम के नाम से भी जाना जाता है । बेटर्ड बेबी सिंड्रोम, बाल मृत्यु-दर का एक महत्वपूर्ण कारण है।

यह अवस्था अमेरिका तक सीमित नहीं है, जहां यह मूल रूप से सूचित किया गया था । वहाँ 1000 जीवित जन्मों में से 6 बच्चों में होता है। यह एक (आइस्बर्ग फिनामनान) हिमखंड घटना है, जो कि सभी महाद्वीपों और क्षेत्रों में मौजूद है, जब कि 5% मामलों की सूचना मिल पाती है । कोई जाति या धर्म इस सिंड्रोम से अप्रभावित नहीं है। भारत में गैर रिपोर्टिंग या अंडर रिपोर्टिंग के कारण इस सिंड्रोम को सटीक से मापना कठिन है। यह अवस्था मैडिकल चिकित्सकों द्वारा अपर्याप्त रूप से पहचानने और प्रबन्धित किया जाने तथा संशय और की वजह से उचित अधिकारियों तक नहीं पहुंच रहा है। प्रोटोकॉल और सिस्टम की कमी के कारण पदाधिकारी खुद उचित हस्तक्षेप प्रदान करने के लिए अवगत नहीं हैं।

बेटर्ड बेबी सिंड्रोम जैसी शर्मनाक अवस्था की वजह भारत में बाकी दुनिया से कुछ भिन्न है, क्योंकि यहाँ भारत के कुछ क्षेत्रों में नर बच्चे को पाने के लिए दुष्ट झुकाव (पुरुष बाल प्राथमिकता) पाया जाता है। और जो बाद में जा के ऐसा अमानवीय रूप ले लेता है, इस कारण से भारत में बेटर्ड बेबी अक्सर कन्या (बच्ची) होती है। स्मरणीय उदाहरण हैं 3 महीने की बेंगलुरु की आफरीन और 2 साल की नई दिल्ली की फलक जो शारीरिक हिंसा के कारण मर गई।

भारत में बेशुमार (असंख्य) लड़कियां हैं जो बेटर्ड बेबी सिंड्रोम या अन्य प्रकार के शारीरिक शोषण भोग रही हैं। इस समस्या के भार का अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि भारत में बाल (शिशु) मृत्यु दर में सबसे ज्यादा संख्या कन्या मृत्यु दर की है।

एक खोज में दावा किया गया है कि भारत में पांच साल से कम उम्र की लड़कियां घरेलू हिंसा की वजह से असामान्य रूप से मर रही हैं। सेक्स चयनात्मक कन्या भ्रूण हत्या की बुरा मानसिकता, समय के साथ जारी रहती है और जो बाद में जा के लड़का और लड़की के बीच में भेदभाव का रूप को लेती है। बेटर्ड बेबी सिंड्रोम सभी सामाजिक वर्गों में देखा जा सकता है और इसका प्रचलन वहां ज्यादा मौजूद है जहां शिक्षा और आय का स्तर अपेक्षाकृत कम होता है।

सामाजिक बुराइयां जैसे कि शराबीपन, नशीली दवाओं के दुरुपयोग और माता-पिता (अभिभावकों) के बीच में कलह (झगड़ा), लड़ाई-झगड़ा तथा गरीबी, बेरोज़गारी, ज़्यादा भीड़-भाड़, मानसिक बीमारियां, क्रोध प्रकरणों और तनावपूर्ण परिस्थितियों जैसे अन्य कारकों के कारण बेटर्ड बेबी सिंड्रोम होता है।

पश्चिम में एकल अभिभावक, सौतेले माता-पिता और दत्तक बच्चों के साथ में ऐसी अवस्था ज़्यादा देखी गयी है, जबकि भारत में, निराश्रित (बेसहारा) बच्चों और छोटी बच्चियों के साथ ऐसी तबाही की आशंका अधिक होती है। प्रताड़ित (पीड़ित) बच्चे चिकित्सक अथवा बाल (रोग) चिकित्सक के पास में अक्सर पूरे शरीर में चोट, खरोंच और घाव-संबंधी अवस्था में लाए जाते हैं। विशेष रूप से मुँह में चोट, फटे होंठ, शरीर पर जले हुए निशान और घबराहट के साथ लाए जाते हैं।

बच्चे का शरीर पर चोटें और नील का रूप, हाथ के छाप (इंप्रेशन) या चोट लगाने में इस्तेमाल होने वाली वस्तु के आकार जैसा हो सकता है। गर्दन के चारों ओर गला घोंटने के निशान, जले हुए निशान, दांतों से काटे जाने के निशान, अक्सर देखे जाते हैं। जैसे कि तस्वीर में दिखाया गया है कि खरोंच, हेमेंटॉमा, चोट लगने से नीली हुई आंखें और त्वचा में अलग-अलग रंग के घाव विभिन्न चरणों में देखे जा सकते हैं ।

टूटी हुई हड्डियां, विशेष रूप से खोपड़ी, बाहों और हाथों की हो सकती हैं। कुछ मामलों में गंभीर सिर (दिमाग) की चोट मौजूद हो सकती है। पीड़ित बच्चे को गंभीर चोट लग सकती है जिसकी वजह से वह मर भी सकता है। जो व्यक्ति बच्चे को प्रताड़ित करता है वह आमतौर पर अनजाने में उसे चोट देता है। सथ ही, एक शिशु को अधिक हिलाने से मस्तिष्क में खून की नस (रक्तवाहिनी) फटने की संभावना बढ़ जाती है और मस्तिष्क में गंभीर चोट लग सकती है। शिशु अस्पष्टीकृत बेहोशी (बीना स्पष्ट कारन), ऊपर उठा (उभड़ा) हुआ फ़ॉन्टॅनेल और अन्य लक्षण के साथ में प्रस्तुत हो सकता है।

शिशु अस्पष्टीकृत बेहोशी (बीना स्पष्ट कारन), ऊपर उठा (उभड़ा) हुआ फ़ॉन्टॅनेल और अन्य लक्षण के साथ में प्रस्तुत हो सकता है। बड़े बच्चों भय और बेहद चिंतित अवस्था में दिखाई दे सकते हैं । लेखक ने 10 से 18 वर्ष तक की आयु की लड़कियों को अपने पिता द्वारा शारीरिक रूप से दुर्व्यवहार घटित हुआ देखा और उपचार किया है, जो अक्सर शराब के नशे के प्रभाव में किया गया था ।  मारने के अलावा बाल दुर्व्यवहार के अन्य रूप भी मौजूद हो सकते हैं। शारीरिक दुर्व्यवहार में हानिकारक और विषैले पदार्थ खिलाना, पानी में डुबाना, और गला घोंटना शामिल हैं।

भावनात्मक दुर्व्यवहार एक मूक प्रकार का दुर्व्यवहार है, जिसमें माता-पिता द्वारा बच्चे को अस्वीकार या अनदेखा करना शामिल है। इस गैरकानूनी दुर्व्यवहार के परिणामस्वरूप बच्चे के आत्म-सम्मान को आघात होता है। कुपोषण भी शारीरिक उपेक्षा का लक्षण (परिणाम) हो सकता है।

बच्चों में यौन शोषण (दुर्व्यवहार) मौजूद हो सकता है, लड़कियाँ अथवा लड़के भी यौन पीड़ित हो सकते हैं । यौन शोषण के कारण, पेरिनियम में ज़ख़म मौजूद होते हैं । लेखक (शिशु सर्जन) ने इस तरह के यौन शोषण से पीड़ित बच्चों का उपचार किया है, उनमे से कुछ बच्चों में पेरिनियम विकृत अवस्था में था । बच्चे अक्सर बोलने में असमर्थ होते हैं या गंभीर रूप से भयभीत हो सकते हैं।

बच्चे के साथ दुर्व्यवहार करने वाला व्यक्ति अक्सर अनियंत्रित आवेग के कारण, क्रोध में अथवा तनाव के क्षणों के दौरान ऐसा करता है । दुर्व्यवहार करने वाला व्यक्ति अक्सर निराश, उदास और ऐसे दोस्तों के बिना होता है जो उसकी मदद कर सकते हो। दोस्त या व्यक्ति की भी कमी होती है जो संकट के क्षणों में मदद कर सकती है अक्सर छोटे बच्चे के निरंतर रोने वाले एपिसोड के दौरान माता- या पिता उसके साथ दुर्व्यवहार करते हैं।

पीड़ित बच्चे को डॉक्टर के पास माता-पिता, रिश्तेदारों या नजदीकी लोगों द्वारा लाया जाता है। बच्चे की अवस्था सतर्क सामाजिक कार्यकर्ता या शिक्षक का भी ध्यान आकर्षित कर सकती है, जो बच्चे को चिकित्सकीय राय के लिए ला सकते हैं । अभिभावक द्वारा प्रदान की गई जानकारी और रोगविषयक निष्कर्षों के बीच असमानता होती है। कोई भी अस्पष्ट या बार-बार आने वाली चोट, बेटर्ड बेबी सिंड्रोम की ओर संकेत करती है ।

रोग का निदान और मूल्यांकन, मल्टी-स्पेशियलिटी राय a तथा विचार-विमर्श के पश्चात लेना चाहईए, क्योंकि यह फ़ैसला उस बच्चे के लिए जीवन और मृत्यु का निर्णय हो सकता है। चिकित्सकों स्वास्थ्य आगंतुकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और शिक्षकों के बीच रिपोर्ट की साझा जिम्मेदारी होना महत्वपूर्ण है।

सभी बाल चोटों (रोगों) और गैर-गंभीर चोटों के मामले में बेटर्ड बेबी सिंड्रोम पर विचार करना महत्वपूर्ण है, तथा सभी संदिग्ध बच्चों को अस्पताल में भर्ती करना चाहिए। महान शोधकर्ता हेनरी केम्प ने समझाया था कि स्थिति का मूल्यांकन गैर- अभियोगात्मक (बिना परदाफ़ाश करते हुए) ढंग से किया जाना चाहिए ।

विस्तृत नैदानिक (रोगविषयक) परीक्षण, जिसमें शामिल है शारीरिक परीक्षण, आंखों में रक्तस्राव का पता लगाने तथा आंतरिक शारीरिक चोटों के लिए जांच । विशेष रूप से 2 से 3 साल तक की उम्र के बच्चे में पूर्ण कंकाल सर्वेक्षण किया जाना चाहिए । विभिन्न चरणों में अनेक अस्थि-भंग (फ्रैक्चर) और मेटाफिसियल अलगाव के साथ फ्रैक्चर बैटरर्ड बेबी सिंड्रोम के सूचक हैं । सोनोग्राफी तथा एमआरआई का इस्तेमाल किया जा सकता है।

बच्चे का शारीरिक और मानसिक विकास संबंधी मूल्यांकन किया जाना चाहिए। परिवार में संभावित शोषण (दुर्व्यवहार) करने वाला ढूंढ निकालने के लिए धीरे-धीरे से मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन किया जाता है।

जांच टीम के लिएअन्य स्थितियां जो बेटर्ड बेबी सिंड्रोम की नकल कर सकती हैं, वो हैं रक्तस्राव विकार, ओस्टोजेनेसिस इमपरफैक्टा, मालाब्सॉर्प्शन सिंड्रोम, इत्यादि।

चिकित्सा उपचार चोट प्रकार, चोट की गंभीरता के अनुसार होता है, तथा बाद में माता और पिता की मानसिक स्थिति पर निर्भर करता है। इस दशा में बच्चों की सेवा के लिए मनोचिकित्सक, सामाजिक कार्यकर्ता, दत्तक दादी और दत्तक मां की प्रमुख भूमिका है ।

दूसरी ओर अगर माता अथवा पिता कोई भी बड़ी मानसिक बीमारी से ग्रस्त हैं या अगर वे आक्रामक मनोरोगी हैं तो बच्चे को माता-पिता के पास वापस करना (भेजना) असुरक्षित है। विशेष मामलों में माता-पिता के अधिकार स्थायी रूप से समाप्त हो सकते हैं और बच्चों को पालक घर में अपनाया (गोद लिया) जाता है।

उपचार की योजना, इलाज के शुरुआती चरणों में हालत संदिग्ध होने पर 4 शीर्षकों

के अनुसार तामील करनी होगी: 1) निदान की पुष्टि के लिए बच्ची (बच्चे) को अस्पताल में भर्ती कराना, 2) माता-पिता से अस्थायी पृथक्करण (अलग करना) द्वारा बाल संरक्षण, 3) बच्चे की सुरक्षित वापसी करने के लिए माता-पिता की मातृत्व (ममता) चिकित्सा और 4) बच्चे की अपने घर परिवार या पालक देखभाल घर में धीरे-धीरे वापसी ।

पीड़ित बच्ची (बच्चे) के दीर्घकालिक प्रबंधन को “भावनात्मक घावों” के उपचार की ओर निर्देशित किया किया जाता है । भावनात्मक घाव शारीरिक शोषण के परिणाम होते हैं। बच्ची (बच्चे) भावनात्मक सम्बंधित मनोवैज्ञानिक रोग, विश्वास की कमी, व्यवहार समस्याओं, अवसाद और हिंसक व्यवहार से पीड़ित हो सकती (सकता) है।

रोगी के भाई बहन का संभावित दुर्व्यवहार के लिए मूल्यांकन आवश्यक है। पीड़ित बच्चे के भाई बहन के साथ में दुर्व्यवहार 1/5 मामलों में मौजूद होता है।

संयुक्त राष्ट्र महासभा के अनुसार बच्चों को अहिंसात्मक बचपन का पूर्ण अधिकार है जो बाल अधिकार के संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (नवंबर 1989) में निहित है। बेटर्ड बेबी सिंड्रोम इस संदर्भ में विशाल चुनौती है। बेटर्ड बेबी सिंड्रोम के लिये यदि निगरानी प्रणाली अच्छी और सक्रिय तरह से काम करे, और अवस्था के शुरू होने पर रोग-निदान स्थापित की जा सके तो समस्या का समाधान किया जा सकता है।

चिकित्सा पाठ्यक्रम में बेटर्ड बेबी सिंड्रोम का पर्याप्त कवरेज, चिकित्सकों विशेष रूप से बाल (रोग) चिकित्सकों की निरंतर संवेदीकरण, प्रबंधन के दिशा-निर्देश, विभिन्न स्तरों पर उचित संरचित प्रणाली की स्थापना, स्थिति से निपटने के लिए एक नोडल एजेंसी तथा प्रबंधन के लिए उचित हस्तक्षेप, और निरंतर निगरानी की आवश्यकता है।  

हालांकि कानून में प्रवर्तन और दंड महत्वपूर्ण है, लेकिन सामाजिक परिवर्तन, बच्ची के प्रति समाज की धारणा और स्वस्थ वातावरण समाज में इस दुष्ट उपस्थिति को कम करने में मौलिक है।

माता-पिता का प्रशिक्षण और शिक्षा, बेहतर परवरिश और कौशल प्रदान करना, ‘मातृत्व चिकित्सा’, परामर्श, सामाजिक समर्थन, दोस्तों और परिवार के अन्य सदस्यों से मदद और समय पर रोकथाम सर्वोपरि हैं।

अकेले डॉक्टर समाज में परिवर्तन नहीं ला सकते। समाज की सामूहिक चेतना को बढ़ाने और लड़की के प्रति प्यार और निविदा की भावना पैदा करने के लिए एक राष्ट्रीय आंदोलन की आवश्यकता है । छोटी बच्चीयां देवी शक्ति का अवतार हैं, आइए हम लड़कियों को बचाने की प्रतिज्ञा करें। बेटी बचाओ बेटी पढाओ ।

Dr. Rahul Gupta

MBBS, MS (General Surgery), M.Ch. (Paediatric Surgery) 

FMAS, FIMSA, AFAMS, FIAGES, FIAPS, FPESI, FALS-Robotcs

Professor,

Department of Paediatric Surgery

SMS Medical College, Jaipur

Former H.O.D. 

Department of Paediatric Surgery

GMC Kota, 

Rajasthan, India 

 

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